फ्रीडम है क्या - आपकी आजाद सोच और विचार। आप कुछ खाना चाहते हैं, खा लिया। सोना चाहते हैं, सो गए, क्या यह आजादी है, बिलकुल नहीं! यह तो सिर्फ लाइफ जीने का एक तरीका है। मोस्ट ऑफ दि टाइम, हम दूसरों की सोच के अकॉरडिंग, अपनी लाइफ को क्राफ्ट करते हैं। ऐसा करके हम अपने विचारों या खुद को, थोड़ा लिमिट करने का ट्राई करते हैं। लेकिन कुछ नियम-कायदों में रहने का मतलब यह नहीं है कि आपकी आजादी छिन रही है, बल्कि यह डिसिप्लिन ही, हमारी आजादी की bottom line है। जैसे कि freedom of expression है, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं, कि आप किसी को भी, गाली निकाल सकते हैं। आपकी आजादी, से किसी को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। फ्रीडम वो है जो- आपको नरिश करे, आपको और बेहतर बनाए। हमारी पर्सनल लाइफ में फ्रीडम क्या है? हम सब एक डेली रूटीन को फॉलो करते हैं, कोई स्टूडेंट है, कोई प्रोफेशनल पर्सन और कोई हाउसवाइफ या कुछ भी! लेकिन कई बार आपके अपने, आपको कुछ रूल-रेगुलेशन में रहने के लिए कहते हैं! मान लीजिए किसी स्टूडेंट को टाइम पर घर लौटने, नशे या एक खराब संगत से दूर रहने या फिर आपको एक हेल्थी लाइफ स्टाइल अपनाने के लिए कहा जाता है! आपको यह रोकटोक, बुरी लगेगी, क्योंकि हम अपने तरीके से जिंदगी जीना पसंद करते हैं! लेकिन आप इन बातों को सीरियस नहीं लेते है, तो अंत में आपको, बहुत खराब सिुचएशन फेस करनी पड़ सकती हैं! आपकी हेल्थ और करियर खराब हो सकता है और इस सब से आप बचे रहें, इसलिए कुछ लोग, आपको अपने अनुभव के आधार पर, नियम-कायदे समझाते हैं! अब यह आप पर डिपेंड करता है कि आप खुशी से इस डिसिप्लिन को अपना लेते हैं या फिर कुछ नुकसान के बाद, तो आप खुद, अपनी आजादी को थोड़ा लिमिट कर ही लेंगे।
यह बिलकुल सही है कि पानी को, मुट्ठी में बंद करने की कोशिश करेंगे, तो वो हाथ से निकल जाएगा! रिश्तों में भी ऐसा ही होता है! प्यार, मोह और लोगों को खोने के डर से, हम जाने-अनजाने उन्हें पूरी तरह से कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं! इसी ज्यादा इंटरफेरेंस से तंग आकर, वो लोग हमसे आजाद होना चाहते हैं! प्रेम का मतलब सामने वाले इन्सान को समझना भी है! हर किसी की एक पर्सनल लाइफ है और किसी को पिंजरे में कैद करके नहीं रखा जा सकता! आपका प्यार, सामने वाले को बंदिश नहीं लगना चाहिए! वहीं, अगर आपको लगता है कि आपके पेरेंट्स या आपको चाहने वाला कोई भी, आपके लिए ज्यादा possessive हो रहा है, तो उन्हें समझने की कोशिश करें! वो आपकी आजादी में रोड़ा नहीं हैं। वो आपसे बेहद प्यार करते हैं और आपको खोने का डर, उन्हें इतना इनसिक्योर बना देता है कि उन्हें खुद को भी अंदाजा नहीं होता, कि वो आपको हर्ट कर रहे हैं।
हमारा संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी देता है! लेकिन क्या अनाप-शनाप, गाली-गलौज करके, हम दूसरों के रिस्पेक्टफुल लाइफ जीने के अधिकार को नहीं छीन रहे! किसी से झगड़ा होता है, तो गालियां निकाल कर उन्हें हर्ट और एब्यूज कर रहे हैं! इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर बदजुबानी का बढ़ता ट्रेंड या फिर दोस्तों के साथ आम बोलचाल में अब्यूज़िव लैंग्वेज का यूज, मार्डन होने का सिंबल बन गया है! जब कोई बड़े ही सभ्य और शालीन तरीके से पेश आता है, तो हम डिसाइड कर लेते हैं कि वो पुराने जमाने का है! और यही कारण है कि आज हमारी यंग जेनरेशन, Vulgar भाषा को, बहुत Cool समझती है! अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हर कोई पूरी तरह से आज़ाद है, लेकिन क्या बैड-लैंग्वेज हमारे कल्चर और संस्कारों के हिसाब से सही है? गुस्सा या नाराजगी स्वाभाविक है, लेकिन क्या हम, शांतिपूर्वक रिस्पांस नहीं कर सकते, ताकि दूसरे लोग उसे एक आर्डर की तरह न लें! दूसरों पर अपने विचारों को थोपने की बजाय, उन्हें प्यार से समझाया जा सकता है! उसे मानना या नहीं, यह उनका डिसीजन है! श्रीमद भगवत गीता में कहा गया है कि आप आजाद हैं, कुछ भी चुनने के लिए! श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन का सार समझाने के बाद, लास्ट डिसिजन अर्जुन पर छोड़ दिया था, कि वो जो चाहे, वो करे! ठीक वैसे ही आपका परिवार और आपकी सोसायटी, अपने एक्सपीरिएंस और तमाम चीजों को देखते हुए, आप को कुछ नियम-कायदों से चलना सिखाती है। ये बंदिशें आपकी आजादी छीनने के लिए नहीं हैं! डिसिप्लिन में रहना, अपने संस्कारों में रहते हुए सभ्य भाषा बोलना और बड़ों की बातें मानना, हर्गिज गलत नहीं है! लेकिन अगर, गलत चीजों, यानी abusive बोलचाल को अपनाने का मतलब ही, मार्डन होना है, तो पुराने ख्यालात के होकर, अच्छी भाषा को अपनाना, ज्यादा बेहतर है!